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ऋ॒तं च॑ मे॒ऽमृतं॑ च मेऽय॒क्ष्मं च॒ मेऽना॑मयच्च मे जी॒वातु॑श्च मे दीर्घायु॒त्वं च॑ मेऽनमि॒त्रं च॒ मेऽभ॑यं च मे सु॒खं च॑ मे॒ शय॑नं च मे सू॒षाश्च॑ मे सु॒दिनं॑ च मे य॒ज्ञेन॑ कल्पन्ताम् ॥६ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ऋ॒तम्। च॒। मे॒। अ॒मृत॑म्। च॒। मे॒। अ॒य॒क्ष्मम्। च॒। मे॒। अना॑मयत्। च॒। मे॒। जी॒वातुः॑। च॒। मे॒। दी॒र्घा॒यु॒त्वमिति॑ दीर्घायु॒ऽत्वम्। च॒। मे॒। अ॒न॒मि॒त्रम्। च॒। मे॒। अभ॑यम्। च॒। मे॒। सु॒खमिति॑ सु॒ऽखम्। च॒। मे॒। शय॑नम्। च॒। सू॒षा इति॑ सुऽउ॒षाः। च॒। मे॒। सु॒दिन॒मिति॑ सु॒ऽदिन॑म्। च॒। मे॒। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒न्ता॒म् ॥६ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:18» मन्त्र:6


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मे) मेरा (ऋतम्) यथार्थ विज्ञान (च) और उसकी सिद्धि करनेवाला पदार्थ (मे) मेरा (अमृतम्) आत्मस्वरूप वा यज्ञ से बचा हुआ अन्न (च) तथा पीने योग्य रस (मे) मेरा (अयक्ष्मम्) यक्ष्मा आदि रोगों से रहित शरीर आदि (च) और रोगविनाशक कर्म (मे) मेरा (अनामयत्) रोग आदि रहित आयु (च) और इसकी सिद्धि करनेवाली ओषधियाँ (मे) मेरा (जीवातुः) जिससे जीते हैं वा जो जिलाता है, वह व्यवहार (च) और पथ्य भोजन (मे) मेरा (दीर्घायुत्वम्) अधिक आयु का होना (च) ब्रह्मचर्य और इन्द्रियों को अपने वश में रखना आदि कर्म (मे) मेरा (अनमित्रम्) मित्र (च) और पक्षपात को छोड़ के काम (मे) मेरा (अभयम्) न डरपना (च) और शूरपन (मे) मेरा (सुखम्) अति उत्तम आनन्द (च) और इसको सिद्ध करनेवाला (मे) मेरा (शयनम्) सो जाना (च) और उस काम की सिद्धि करनेवाला पदार्थ (मे) मेरा (सूषाः) वह समय कि जिसमें अच्छी प्रातःकाल की वेला हो (च) और उक्त काम का सम्बन्ध करनेवाली क्रिया तथा (मे) मेरा (सुदिनम्) सुदिन (च) और उपयोगी कर्म ये सब (यज्ञेन) सत्य वचन बोलने आदि व्यवहारों से (कल्पन्ताम्) समर्थित होवें ॥६ ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य सत्यभाषण आदि कामों को करते हैं, वे सदा सुखी होते हैं ॥६ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(ऋतम्) यथार्थविज्ञानम् (च) एतत्साधकम् (मे) (अमृतम्) स्वस्वरूपं मुक्तिसुखं यज्ञशिष्टमन्नं वा (च) पेयम् (मे) (अयक्ष्मम्) यक्ष्मादिरोगरहितं शरीरादिकम् (च) एतत्साधकं कर्म (मे) (अनामयत्) रोगादिरहितम् (च) एतत्साधकमौषधम् (मे) (जीवातुः) येन जीवन्ति यज्जीवयति वा (च) पथ्यादिकम् (मे) (दीर्घायुत्वम्) चिरायुषो भावः (च) ब्रह्मचर्यजितेन्द्रियत्वादिकम् (मे) (अनमित्रम्) अविद्यमानशत्रुः (च) पक्षपातरहितं कर्म (मे) (अभयम्) भयराहित्यम् (च) शौर्यम् (मे) (सुखम्) परमानन्दः प्रसन्नता (च) एतत्साधकं कर्म (मे) (शयनम्) (च) एतत्साधनम् (मे) (सूषाः) शोभना उषा यस्मिन् स कालः (च) एतत्सम्बन्धि कर्म (मे) (सुदिनम्) शोभनम् च तद्दिनं च तत् (च) एतदुपयोगि कर्म (मे) (यज्ञेन) सत्यभाषणादिव्यवहारेण (कल्पन्ताम्) समर्था भवन्तु ॥६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - मे ऋतं च मेऽमृतं च मेऽयक्ष्मं च मेऽनामयच्च मे जीवातुश्च मे दीर्घायुत्वं च मेऽनमित्रं च मेऽभयं च मे सुखं च मे शयनं च मे सूषाश्च मे सुदिनं च यज्ञेन कल्पन्ताम् ॥६ ॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्याः सत्यभाषणादीनि कर्माणि कुर्वन्ति, ते सर्वदा सुखिनो भवन्ति ॥६ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे सत्य भाषण इत्यादी कर्म करतात ती नेहमी सुखी होतात.